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Murli Manohar Mandir Jhansi – झांसी का मुरली मनोहर मंदिर: जहाँ राधा-कृष्ण के संग रुक्मिणी भी पूजी जाती हैं

🌸 Murli Manohar Mandir Jhansi
🕰️ जहाँ 250 साल पुराना इतिहास साँस लेता है…

📍 स्थान: बड़ा बाजार, झांसी, उत्तर प्रदेश
📅 स्थापना वर्ष: 1780 | मूर्ति स्थापना: 1785

झांसी की तंग गलियों और बाज़ारों की चहल-पहल के बीच स्थित एक ऐसा पवित्र स्थान — मुरली मनोहर मंदिर — जहाँ भक्ति, इतिहास और प्रेम की त्रिवेणी बहती है।
इस मंदिर की नींव 1780 में रखी गई थी और लगभग 5 वर्षों के परिश्रम के बाद, 1785 में मंदिर में राधा, कृष्ण और रुक्मिणी की प्रतिमाएँ स्थापित की गईं।

यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक एकता, नारी सम्मान, और रानी लक्ष्मीबाई जैसे ऐतिहासिक पात्रों की स्मृतियों से जुड़ा एक जीवंत प्रतीक है।


🧱 वास्तुकला में सादगी, श्रद्धा में भव्यता

🔸 मुरली मनोहर मंदिर की सबसे अनूठी बात यह है कि इसमें कोई गुंबद नहीं है।
🔸 यह निर्माण शैली सीधे मन, भक्ति और प्रेम से जुड़ी है — यहाँ भव्यता नहीं, भावना की प्रधानता है।

मंदिर का गर्भगृह अत्यंत शांत, सुशोभित और दिव्य है। जैसे ही आप भीतर प्रवेश करते हैं, आप तीन अद्वितीय मूर्तियों के दर्शन करते हैं:

  • कृष्ण बीच में — मुरली बजाते हुए

  • दाईं ओर राधा रानी
  • बाईं ओर देवी रुक्मिणी

यह संयोजन संभवतः पूरे भारतवर्ष में अपनी तरह का अकेला उदाहरण है, जहाँ राधा और रुक्मिणी, दोनों का सम्मान समान रूप से होता है।


🧭 उत्तर और दक्षिण भारत की एकता का मंदिर

🙏  इस मंदिर की स्थापत्य भावना केवल भक्ति तक सीमित नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक एकता को समर्पित है।
उत्तर भारत में जहाँ राधा रानी की पूजा प्रमुख है, वहीं दक्षिण भारत में रुक्मिणी देवी को अधिक श्रद्धा से पूजा जाता है।

💡 इसी कारण इस मंदिर में दोनों को साथ स्थान देकर, एक भावनात्मक सेतु बनाया गया है — जो दर्शाता है कि कृष्ण केवल द्वारकाधीश नहीं, वृंदावन के भी हैं, और हर भक्त के हैं।


👑 रानी लक्ष्मीबाई और मंदिर का गहरा रिश्ता

इस मंदिर को झांसी की राजमाता (गंगाधर राव की माता) ने बनवाया था।
लेकिन आज इसे झांसीवासी “महारानी लक्ष्मीबाई का मायका” कहते हैं।

क्यों?
क्योंकि जब मोरोपंत तांबे (लक्ष्मीबाई के पिता) ने अपनी बेटी मनु (बचपन का नाम) का विवाह गंगाधर राव से किया, तो वे भी झांसी आ गए।
👉 मंदिर के ऊपरी कक्ष में मोरोपंत तांबे रहा करते थे।
👉 महारानी लक्ष्मीबाई अक्सर यहाँ आतीं — अपने पिता से मिलने और भगवान कृष्ण के दर्शन के लिए।

यह मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि रानी की स्मृतियों का साक्षी, उनके बचपन और वैवाहिक जीवन का भावनात्मक केंद्र है।

मुरली मनोहर मंदिर झांसी की आत्मा है — एक ऐसा मंदिर जो धार्मिक भक्ति, ऐतिहासिक महत्व और सामाजिक एकता को समेटे हुए है।
यह मंदिर सिखाता है कि भारत केवल विविधताओं का देश नहीं, विविधताओं में एकता का जीता-जागता उदाहरण है।

💬 “जहाँ रानी की स्मृति हो, राधा-रुक्मिणी का संग हो और भक्ति का उजास हो — वह स्थान केवल मंदिर नहीं, भारत की आत्मा होता है।”

💒 कृष्ण जन्माष्टमी की भव्यता

हर साल कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर यह मंदिर दिव्यता में डूब जाता है।

🌟 विशेष आयोजन होते हैं:

  • भजन-कीर्तन

  • कृष्ण-लीला मंचन

  • पुष्प सजावट

  • रात भर चलता झांकी दर्शन

  • मंदिर परिसर को दीपों और तोरणों से सजाया जाता है

इस दिन मंदिर में राधा, कृष्ण और रुक्मिणी की विशेष आरती होती है, और भक्त तीनों रूपों में श्रीकृष्ण को नमन करते हैं।

📷 क्या देखें:
  • मंदिर का गर्भगृह

  • ऊपरी तल पर मोरोपंत तांबे का निवास कक्ष

  • रानी लक्ष्मीबाई की संबंधित स्मृतियाँ

  • जन्माष्टमी पर्व के दौरान होने वाला सांस्कृतिक आयोजन

➡️ मंदिर को “धार्मिक पर्यटन”, “इतिहास पर्यटन” और “सांस्कृतिक अध्ययन” के लिए एक सर्वोत्तम स्थल माना जा सकता है।

विमल "हिंदुस्तानी"
"लेखक ने दिल्ली एनसीआर के प्रमुख संस्थान से Mass Communication & Journalisam with Advertisment मे दो वर्ष अध्ययन किया है एवं पिछले दस वर्षों से मीडिया जगत से जुड़े हैं। उन्होंने विभिन्न न्यूज़ चैनलों में संवाददाता के रूप में कार्य किया है और एक समाचार पत्र का संपादन, प्रकाशन तथा प्रबंधन भी स्वयं किया है। लेखक की विशेषता यह है कि वे भीड़ के साथ चलने के बजाय ऐसे विषयों को उठाते हैं जो अक्सर अनछुए रह जाते हैं। उनका उद्देश्य लेखनी के माध्यम से भ्रम नहीं, बल्कि ‘ब्रह्म’ – यानि सत्य, सार और सच्चाई – को प्रस्तुत करना है।"