Kargil Vijay Divas: कारगिल विजय दिवस 2025: जब वीरों ने अपने लहू से लिखी विजयगाथा
जब दो देशों के बीच जंग होती है, तो उसके पीछे केवल राजनीति या सीमा विवाद नहीं होता, बल्कि असली बलिदान वे सैनिक देते हैं जो देश की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देते हैं। 26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध का अंत हुआ और भारत ने पाकिस्तान पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। इस जीत को “ऑपरेशन विजय” नाम दिया गया और तब से हर साल 26 जुलाई को “कारगिल विजय दिवस” के रूप में मनाया जाता है। 2025 में इस युद्ध की 26वीं वर्षगांठ है और पूरे देश में वीर शहीदों को याद कर श्रद्धांजलि दी जा रही है।
527 शहीद, पर हर एक के पीछे एक वीरगाथा
इस युद्ध में भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए। इनकी शहादत के पीछे कई दर्दभरी लेकिन गर्व से भरी कहानियां छुपी हैं। किसी माँ ने अपना लाल खोया, किसी पत्नी ने अपना सुहाग, और किसी बहन ने भाई को खो दिया। लेकिन इन जवानों का साहस, उनका समर्पण आज भी हर भारतीय के दिल में जीवित है।
🪖 15 गोलियां खाकर भी दुश्मन के टुकड़े-टुकड़े कर दिए – योगेंद्र सिंह यादव
परमवीर चक्र विजेता सूबेदार मेजर (सेवानिवृत्त) योगेंद्र सिंह यादव सिर्फ 19 साल की उम्र में जंग के मैदान में कूद पड़े थे। टाइगर हिल पर जब दुश्मनों ने ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं, तो उनके छह साथी शहीद हो गए और यादव जी को 15 गोलियां लगीं। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
“मैंने एक हैंड ग्रेनेड दुश्मन के सैनिक पर फेंका, जो उसके कोट में फंसा और फट गया। वो समझ भी नहीं पाया और वहीं ढेर हो गया।”
दुश्मन ने सोचा था कि सब मर चुके हैं, लेकिन योगेंद्र सिंह यादव ने अकेले ही दुश्मनों को खत्म कर दिया और भारत की जय का झंडा फहराया।
💍 मंगेतर को लौटाई अंगूठी: कैप्टन अनुज नय्यर की अनसुनी कहानी
कैप्टन अनुज नय्यर, जिन्होंने बटालिक सेक्टर में वीरता से लड़ते हुए शहादत दी, जंग से पहले अपने कमांडिंग ऑफिसर को अपनी इंगेजमेंट रिंग सौंप गए थे। उन्होंने कहा:
“अगर मैं लौटकर ना आऊं, तो ये अंगूठी मेरी मंगेतर तक पहुंचा देना।”
उनकी मां बताती हैं कि अनुज घरवालों को नियमित पत्र लिखते थे और पाक घुसपैठ को लेकर बेहद क्रोधित थे। शहादत के वक्त उन्होंने अपने सारे निजी सामान छोड़ दिए थे—जैसे वो जान चुके हों कि अब लौटना नहीं है।
🏔️ विजयंत थापर: 22 साल की उम्र में तोलोलिंग पर तिरंगा लहराया
कैप्टन विजयंत थापर की वीरता की गाथा भी हर भारतीय के हृदय में बसी है। मात्र 22 साल की उम्र में उन्होंने टोलोलिंग की पहाड़ियों को दुश्मनों से मुक्त कराया। अपने पिता कर्नल वीएन थापर को भेजे आखिरी पत्र में उन्होंने लिखा था:
“अगर मैं लौटकर न आऊं, तो कह देना कि मैंने अपना कर्तव्य निभाया है।”
उनकी शहादत भारत की सबसे प्रेरक बलिदानों में से एक मानी जाती है।
🏳️🌈 शेरशाह विक्रम बत्रा: “यह दिल मांगे मोर!”
कैप्टन विक्रम बत्रा कारगिल युद्ध का सबसे चर्चित नाम है। उन्होंने टाइगर हिल पॉइंट 4875 को दुश्मनों से मुक्त कराया और शहीद हो गए। उनका नारा “यह दिल मांगे मोर” आज भी सेना के हौसले की पहचान है। उनकी प्रेम कहानी और बलिदान को फिल्म शेरशाह (2021) के माध्यम से भी पूरे देश ने महसूस किया।
आज का दिन सिर्फ विजय का नहीं, स्मरण और प्रण का दिन है
कारगिल विजय दिवस सिर्फ एक तारीख नहीं, यह हमारी सामूहिक चेतना, राष्ट्रभक्ति और बलिदान की पराकाष्ठा का प्रतीक है। 1999 में शुरू हुई ये जंग 26 जुलाई को समाप्त हुई, जब भारत ने “ऑपरेशन विजय” के तहत कारगिल की हर चोटियों से पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ दिया।
2025 में जब हम इस जश्न की 26वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, तब यह जरूरी है कि हम अपने वीरों को याद करें, उनके बलिदान से प्रेरणा लें और यह प्रण करें कि देशहित से बड़ा कुछ नहीं।
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(डिसक्लेमर/अस्वीकरण)
यह लेख शहीद जवानों की वीरगाथाओं, समाचारों और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचनाओं पर आधारित है। इसमें शामिल भावनात्मक एवं प्रेरणात्मक वर्णन का उद्देश्य केवल देशप्रेम और श्रद्धांजलि अर्पित करना है। यदि किसी विवरण में त्रुटि हो तो कृपया हमें info@tvtennetwork.com पर सूचित करें।