Kaimasan Mandir Jhansi
झाँसी, बुंदेलखंड की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक राजधानी, जहाँ की हर ईंट वीरता की कहानी कहती है। पर इस धरती पर सिर्फ तलवारों की गूंज नहीं रही, यहाँ श्रद्धा, आस्था और मातृत्व की ऐसी दिव्य गाथाएँ भी जन्मी हैं, जिनका असर आज भी लोगों के जीवन में दिखाई देता है।
इन्हीं कहानियों में से एक है माँ कामाख्या के झाँसी स्थित कैमासन मंदिर की — जहाँ भक्त मन्नतों की झोली लेकर आते हैं और संतान सुख पाकर लौटते हैं।
🌸 संतान प्राप्ति का चमत्कारी स्थान
झाँसी के इस अनूठे मंदिर में माँ कामाख्या के दर्शन करने हर वर्ष हजारों श्रद्धालु आते हैं, विशेषकर वे दंपती जिनके जीवन में संतान सुख नहीं है। यहाँ आने वाले भक्तों की एक अनोखी परंपरा है — वे झूला और घंटा चढ़ाते हैं, और यह विश्वास करते हैं कि माँ उनकी झोली भर देंगी।
मान्यता है कि इस मंदिर में सच्चे मन से की गई प्रार्थना अवश्य फल देती है। झूला यहाँ सिर्फ प्रतीक नहीं, एक माँ की गोद की कल्पना है — और जब यह मन्नत पूरी हो जाती है, तो लोग दोबारा लौटकर माँ को धन्यवाद देने झूला और घंटा चढ़ाते हैं।
🕉️ असम से झाँसी तक – कामाख्या का विस्तार
माँ कामाख्या का प्रमुख मंदिर भारत के असम राज्य के गुवाहाटी शहर में स्थित है, जो 51 शक्तिपीठों में से एक है। पौराणिक मान्यता के अनुसार जब माँ सती ने भगवान शिव के अपमान से आहत होकर योग अग्नि में आत्मबलिदान किया, तब भगवान शिव उनका शव लेकर तांडव करने लगे। ब्रह्मांड को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभक्त कर दिया — जहाँ-जहाँ वे अंग गिरे, वहाँ शक्तिपीठ बन गए।
लेकिन झाँसी का यह मंदिर इन सबसे अलग है। यहाँ माँ सती को पूर्ण स्वरूप में पूजा जाता है — यही कारण है कि यह मंदिर सिर्फ एक शक्तिपीठ नहीं, बल्कि एक जीवित आस्था का केंद्र बन चुका है।
🔥 कैमासन और मैमासन – बलिदान की अमर गाथा
इस मंदिर का नाम Kaimasan ‘कैमासन’ क्यों पड़ा? इसके पीछे एक हृदयविदारक किंवदंती है।
12वीं सदी में चंदेल वंश के शासनकाल में झाँसी में दो बहनें – कैमासन और मैमासन रहा करती थीं। वे रूपवती थीं और उनकी सुंदरता की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी। उस समय भारत पर मुस्लिम आक्रमणकारियों के हमले तेज़ हो चुके थे। इन आक्रमणकारियों ने जब इन बहनों की सुंदरता के बारे में सुना, तो उन्होंने उन्हें बलपूर्वक पाने का प्रयास किया।
लेकिन वीरांगनाओं ने अपना आत्मसम्मान आक्रमणकारियों के चरणों में गिराना स्वीकार नहीं किया। उन्होंने झाँसी की सबसे ऊँची पहाड़ी से छलांग लगाकर प्राण त्याग दिए, लेकिन आत्मसमर्पण नहीं किया।
जब यह घटना महोबा के परमार चंदेल राजा तक पहुँची, तो उन्होंने इस बलिदान को अमर बनाने के लिए यहाँ एक मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर में माँ कामाख्या की स्थापना की गई — क्योंकि वही शक्ति इन बहनों के साहस और आत्मबल का स्रोत थी।
🛕 आस्था की 176 सीढ़ियाँ
मंदिर तक पहुँचने के लिए 176 सीढ़ियों की कठिन चढ़ाई पार करनी पड़ती है — और यह चढ़ाई भक्तों के लिए केवल शारीरिक नहीं, बल्कि आत्मिक तपस्या है।
हर सीढ़ी पर माँ के जयकारे सुनाई देते हैं, और जैसे-जैसे भक्त ऊपर चढ़ते हैं, उन्हें लगता है कि वे माँ के और करीब पहुँच रहे हैं।
माँ कामाख्या की तीन बार आरती होती है — प्रातः, मध्यान्ह और संध्या। विशेषकर नवरात्रि के दौरान मंदिर में विशाल मेले सा माहौल बन जाता है। झाँसी और आस-पास के जिलों से भारी संख्या में लोग यहाँ दर्शन के लिए पहुँचते हैं।
🔔 झूले की आस्था, घंटी की गूंज
मंदिर की एक और अनोखी परंपरा है — मन्नत के झूले और घंटियाँ।
जिन महिलाओं को संतान नहीं होती, वे माँ से प्रार्थना करती हैं और झूला चढ़ाती हैं। जब उनकी मन्नत पूरी हो जाती है, तो वे फिर से मंदिर आती हैं और माँ को धन्यवाद स्वरूप घंटा और झूला अर्पित करती हैं।
यह परंपरा केवल मान्यता नहीं, एक जीवन अनुभव बन गई है। कई दंपतियों ने अपनी संतान को माँ का वरदान मानते हुए उसका नाम ‘कामाख्या’ या ‘शक्ति’ रखा है।
📿 इतिहास और श्रद्धा का संगम
यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है। यह बुंदेलखंड की संस्कृति, इतिहास और नारी बलिदान की जीवित धरोहर है।
झाँसी के इस मंदिर में कैमासन और मैमासन जैसी वीरांगनाओं की आत्मा आज भी बसती है, और माँ कामाख्या का आशीर्वाद हर आने वाले भक्त के जीवन को दिशा देता है।
🌿 अंत में…
Kaimasan Mandir Jhansi मे जो भी सच्चे मन से माँ के दरबार में आता है, वह खाली हाथ नहीं लौटता। माँ उसकी हर मुराद सुनती हैं — चाहे वह संतान हो, स्वास्थ्य हो या जीवन में शांति।
झाँसी का माँ कामाख्या कैमासन मंदिर एक ऐसा स्थान है जहाँ इतिहास श्रद्धा से मिलता है, और आस्था शक्ति से।