‘कड़क बिजली’ तोप: झांसी की वीरता और शौर्य का धधकता प्रतीक
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के साहस की गाथा जितनी प्रेरक है, उतनी ही अद्भुत है उनकी युद्ध कौशल की रणनीति और शस्त्र-शक्ति। ऐसी ही एक शौर्य-गाथा का साक्षी है — ‘कड़क बिजली’ तोप। झांसी के ऐतिहासिक किले की पूर्वी प्राचीर पर आज भी यह भीषण तोप गर्व से खड़ी है, मानो दुश्मनों को ललकार रही हो कि “मैं अब भी जीवित हूं!”
🔥 सिंह की मुखाकृति, कड़क आवाज और अद्भुत मारक क्षमता
‘कड़क बिजली’ तोप न सिर्फ एक युद्धक औजार थी, बल्कि वह झांसी के गौरव, आत्मसम्मान और रानी लक्ष्मीबाई की रणकौशल का प्रतीक थी। इस तोप की बनावट जितनी कलात्मक है, उतनी ही घातक भी। इसके अग्रभाग पर उभरा हुआ शेर का चेहरा इसे एक सिंहवत शक्ति का प्रतीक बनाता है। इसके अलावा, तोप पर आंख की आकृति भी उकेरी गई है, जो मानो इस शस्त्र को सजीव बनाती है।
इस तोप की सबसे विशेष बात यह थी कि इसका गोला मुंह पर ही रखा जाता था, जबकि सामान्यतः उस दौर की तोपों में गोला पीछे से डाला जाता था। इस बनावट ने इसकी मारक क्षमता को और भी अधिक घातक बना दिया।
⚔️ रानी लक्ष्मीबाई और गुलाम गौस खां: तोप की त्रासदी और रणभूमि का संग्राम
रानी लक्ष्मीबाई के संघर्ष के साथी और झांसी के वीर तोपची गुलाम गौस खां का नाम ‘कड़क बिजली’ तोप से चिरस्मरणीय रूप से जुड़ा हुआ है। यही वे योद्धा थे जिन्होंने इस तोप के माध्यम से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। कहा जाता है कि इस तोप की आवाज आकाशीय बिजली जैसी डरावनी और तेज होती थी — यही कारण है कि इसे ‘कड़क बिजली’ कहा जाने लगा।
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब अंग्रेजी सेना झांसी पर धावा बोल रही थी, तब गुलाम गौस खां और उनकी तोपों ने लगभग दो सप्ताह तक दुश्मनों को किले में घुसने नहीं दिया। यह समय भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष का एक निर्णायक मोड़ था, और ‘कड़क बिजली’ ने उस समय अपनी भूमिका पूरे गर्व के साथ निभाई।
📏 तोप की बनावट और आयाम
‘कड़क बिजली’ तोप न केवल अपने प्रभाव से बल्कि अपने आकार से भी भव्य थी। इसका माप 5.50 मीटर x 1.8 मीटर है और व्यास 0.6 मीटर है। यह अपने आप में उस युग की तकनीक और धातुकला की उत्कृष्टता का जीवंत उदाहरण है।
🏰 किले का गौरव, आज भी बनी है दर्शनीय धरोहर
आज भी जब पर्यटक झांसी का किला देखने आते हैं, तो सबसे पहले उनकी नजर किले के मुख्य द्वार पर रखी इसी भीमकाय तोप पर जाती है। इसकी भयावहता के किस्से आज भी लोककथाओं और गाइड्स की वाणी में जीवित हैं। राजा गंगाधर राव, जो रानी लक्ष्मीबाई के पति थे, के शासनकाल में इस तोप को बनवाया गया था। यह तोप आज भी झांसी के पूर्वी प्राचीर पर विराजमान है।
इसकी कलाकारी, ऐतिहासिकता और बलशाली भूमिका ने इसे केवल एक युद्ध-उपकरण नहीं बल्कि झांसी के इतिहास की जीवित धरोहर बना दिया है।
‘कड़क बिजली’ तोप सिर्फ एक हथियार नहीं, बल्कि भारतीय स्वाधीनता संग्राम की गूंजती आवाज है। यह तोप उस संघर्ष की प्रतीक है जिसे रानी लक्ष्मीबाई और उनके जैसे रणबांकुरों ने लड़ा। यह झांसी किले का हृदय है — एक ऐसा गवाह जिसने शक्ति, शौर्य और बलिदान को अपनी धातु में महसूस किया है।
अगर आपने अभी तक झांसी का किला नहीं देखा है, तो अगली बार जब आप बुंदेलखंड जाएं, इस ‘कड़क बिजली’ की गड़गड़ाहट की कल्पना जरूर करें — क्योंकि यह आवाज अब भी इतिहास में गूंजती है।
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(डिस्क्लेमर) यह लेख ऐतिहासिक दस्तावेजों, स्थानीय मान्यताओं, पर्यटन मार्गदर्शकों और संग्रहित मौखिक परंपराओं के आधार पर तैयार किया गया है। हमने पूरी सावधानी से शोध कर इस सामग्री को प्रस्तुत किया है, फिर भी इसकी पूर्ण प्रामाणिकता की गारंटी नहीं दी जा सकती। पाठकों से अनुरोध है कि वे इसे एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जानकारी के रूप में ही लें।