📰 धरोहर विशेष
“झांसी किले का कलंक: ओरछा गेट से हुआ विश्वासघात, रानी लक्ष्मीबाई को मिली हार”
🏰 झांसी का किला: 1857 की क्रांति का मूक गवाह
1857 की क्रांति की बात हो और झांसी का जिक्र न आए — यह नामुमकिन है।
ये वही ऐतिहासिक किला है, जहाँ रानी लक्ष्मीबाई ने महज़ 1200 सैनिकों के साथ ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती दी थी।
6 जून 1857 को रानी के नेतृत्व में झांसी किले से अंग्रेजों का झंडा उतार फेंका गया था।
लेकिन… महज़ कुछ महीनों बाद, इसी किले की एक दीवार से इतिहास धोखे में बह गया।
🚪 ‘ओरछा गेट’ – आज भी खड़ा है, मगर शर्मसार है
झांसी किले के 10 दरवाजों में एक दरवाजा ऐसा है, जिसे इतिहासकार स्वतंत्रता संग्राम का ‘कलंक’ मानते हैं — ओरछा गेट।
यह वही गेट है, जहाँ से अंग्रेजों ने किले में घुसपैठ की।
रिपोर्ट्स के अनुसार, इसी गेट पर तैनात सिपाही दूल्हा जू ने अंग्रेजों से मिलीभगत कर रात के अंधेरे में दरवाज़ा खोल दिया।
और बस, वहीं से खेल पलट गया।
⚔️ “अगर यह गेट न खुलता…”
इतिहासकार मानते हैं, यदि ओरछा गेट से अंग्रेज भीतर न आते, तो शायद रानी लक्ष्मीबाई झांसी को लंबे समय तक अंग्रेजों से बचा सकती थीं।
रानी ने अंत तक संघर्ष किया, लेकिन भीतर से हुआ यह विश्वासघात उनकी रणनीति को तोड़ गया।
अंग्रेजों के प्रवेश के बाद भीषण युद्ध हुआ, जिसमें झांसी हार गई।
🧱 धरोहर या धब्बा?
आज भी ओरछा गेट अपनी शानदार बनावट और पुरानी ईंटों के साथ खड़ा है।
पर ये गेट इतिहास के उस दर्द को ढो रहा है, जिसे भुला पाना मुश्किल है।
आसपास के लोग इस गेट को आदर से नहीं, खामोश शर्म से देखते हैं।
कई स्थानीय लोग इसे “काले दरवाज़े” के नाम से भी पुकारते हैं।
🎙️ स्थानीय नागरिक बोले…
“ये गेट सिर्फ़ एक दरवाज़ा नहीं है, ये हमें याद दिलाता है कि भीतर का विश्वास अगर टूटे… तो बाहर की दीवारें कुछ नहीं कर सकतीं।”