🌸 झलकारी बाई: एक साहसी परछाईं, जिसने अंग्रेजों को मात दी🌸
1857 की क्रांति भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला संगठित प्रयास थी, और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई इस संग्राम की सबसे चमकदार प्रतीकों में से एक थीं। पर क्या आप जानते हैं कि इस जंग की एक ऐसी वीरांगना भी थीं, जिनका योगदान अक्सर इतिहास के पन्नों में छुपा रह जाता है? यह कहानी है झलकारी बाई की — वह योद्धा जिसने अपने अद्वितीय साहस और बलिदान से ब्रिटिश फौज को न सिर्फ चकमा दिया बल्कि झांसी की रानी के जीवन को भी बचाया।
जब-जब झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम इतिहास में लिया जाता है, तब-तब उनके साथ खड़ी एक और बहादुर महिला की गाथा भी सुनाई जाती है — झलकारी बाई। एक सामान्य कोरी परिवार में जन्मी यह वीरांगना, न तो किसी राजघराने से थी और न ही उसके सिर पर कोई ताज था, लेकिन देशभक्ति और साहस के मामले में उसने महारानी लक्ष्मीबाई के साथ कंधे से कंधा मिलाकर 1857 के विद्रोह में हिस्सा लिया।
⚔️ बचपन से ही बहादुरी की मिसाल
झलकारी बाई का जन्म उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के भोजला गांव में हुआ था। बचपन में ही मां का देहांत हो गया, लेकिन पिता ने उन्हें बेटों की तरह पाला। उन्होंने झलकारी को घुड़सवारी, तलवारबाज़ी, और हथियारों के उपयोग में दक्ष बना दिया।
एक बार जंगल में एक तेंदुए ने उन पर हमला कर दिया, लेकिन झलकारी ने बिना डरे कुल्हाड़ी से उसका सामना किया और उसे मार गिराया। यही नहीं, डाकुओं से गांव की रक्षा कर उन्होंने ग्रामीणों के दिलों में भी अपना स्थान बना लिया।
🌼 रानी लक्ष्मीबाई से पहली भेंट
गौरी पूजा के अवसर पर झलकारी बाई झांसी के किले में रानी लक्ष्मीबाई का सम्मान करने गईं। जब रानी ने उन्हें देखा, तो आश्चर्यचकित रह गईं क्योंकि झलकारी बिल्कुल उन्हीं की तरह दिखती थीं। बहादुरी के किस्से सुनकर रानी ने उन्हें अपनी महिला सेना ‘दुर्गा दल’ में शामिल कर लिया।
🎭 झलकारी बनीं लक्ष्मीबाई की परछाईं
अप्रैल 1858 में, जब अंग्रेजों ने झांसी पर आक्रमण किया, तब रानी लक्ष्मीबाई को किले से सुरक्षित बाहर निकालने की योजना बनाई गई। इसी योजना में झलकारी बाई ने अपनी जान जोखिम में डालते हुए रानी का रूप धारण कर अंग्रेजों को गुमराह किया।
वृंदावनलाल वर्मा के ऐतिहासिक उपन्यास ‘झांसी की रानी लक्ष्मीबाई’ में इसका जीवंत वर्णन मिलता है। झलकारी ने रानी जैसे वस्त्र पहने, श्रृंगार किया, और अंग्रेजी छावनी में जाकर स्वयं को रानी घोषित किया।
🔥 अंग्रेजों को हुआ भ्रम, रानी को मिला जीवनदान
जनरल ह्यूग रोज तक जब यह सूचना पहुँची कि रानी पकड़ ली गई हैं, तो अंग्रेजों में खुशी की लहर दौड़ गई। लेकिन यह सिर्फ झलकारी की चाल थी। जब तक अंग्रेज सच्चाई समझ पाते, तब तक असली रानी लक्ष्मीबाई किले से सुरक्षित निकल चुकी थीं।
रोज ने जब झलकारी से कहा कि तुम्हें गोली मार दी जानी चाहिए, तब झलकारी ने निर्भीक होकर उत्तर दिया —
“मार दो, इतने सैनिकों की तरह मैं भी मर जाऊंगी।”
रोज यह सुनकर दंग रह गया और कहा —
“अगर भारत की एक प्रतिशत महिलाएं भी झलकारी जैसी हो जाएं, तो हमें भारत छोड़ने पर मजबूर होना पड़ेगा।”
🏵️ झलकारी बाई की विरासत
भले ही झलकारी को इतिहास में उतनी प्रमुखता नहीं मिली जितनी वे पात्र थीं, लेकिन आज उनके योगदान को याद किया जाता है। कई स्थानों पर उनकी प्रतिमाएं लगी हैं, और स्कूलों में उनकी बहादुरी पढ़ाई जाती है।
उन्होंने दिखा दिया कि देशभक्ति, साहस और बलिदान किसी सिंहासन का मोहताज नहीं होता। एक सामान्य महिला भी इतिहास रच सकती है।
झलकारी बाई केवल लक्ष्मीबाई की परछाईं नहीं थीं, बल्कि वह स्वयं में एक प्रकाश स्तंभ थीं, जो देशभक्ति की राह में हजारों महिलाओं के लिए प्रेरणा बनीं। उनके बलिदान और साहस को सलाम।
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📌 (डिसक्लेमर)
यह लेख ऐतिहासिक तथ्यों, पुस्तकों और प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियों पर आधारित है। हमने पूरी सावधानी से रिसर्च करके यह लेख तैयार किया है, परंतु किसी त्रुटि के लिए लेखक या प्रकाशक जिम्मेदार नहीं हैं। यदि आपके पास कोई सुझाव या जानकारी है तो हमें info@tvtennetwork.com पर मेल करें या 7068666140 पर WhatsApp करें।