भारत के उपराष्ट्रपति रहे जगदीप धनखड़ ने मानसून सत्र की शुरुआत से ठीक पहले अपने पद से इस्तीफा देकर राजनीति के गलियारों में हलचल मचा दी है। उनका कार्यकाल भले ही छोटा रहा, लेकिन इस दौरान उन्होंने कई ऐसे मुद्दों पर बयान दिए और फैसले लिए, जिन्हें लेकर उन्हें ‘संवैधानिक लक्ष्मण रेखा’ पार करने वाला कहा गया।
विपक्ष ने जताया विरोध, 63 सांसदों ने भेजा प्रस्ताव
धनखड़ को 21 जुलाई 2025 को विपक्षी सांसदों की ओर से जस्टिस यशवंत वर्मा को पद से हटाने के प्रस्ताव का नोटिस मिला था। चौंकाने वाली बात यह रही कि धनखड़ ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, और वह भी सरकार को सूचित किए बिना। सरकार चाहती थी कि यह महाभियोग पहले लोकसभा से पास हो ताकि उसे न्यायपालिका पर एक कड़ा संदेश देने का जरिया बनाया जा सके। लेकिन विपक्ष ने रणनीतिक तौर पर बाजी मार ली।
🟠 वो मुद्दे जिन पर धनखड़ ने ‘लक्ष्मण रेखा’ पार की
✅ 1. किसान आंदोलन पर सरकार को घेरा
धनखड़ ने दिसंबर 2024 में एक कार्यक्रम के दौरान कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से खुले मंच पर तीखे सवाल पूछे थे। उन्होंने कहा था:
“मैं आपसे निवेदन करता हूं कि कृपया बताइए, किसान से क्या वादा किया गया था? वादा पूरा क्यों नहीं हुआ?”
यह पहली बार था जब एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति ने सरकार से इस तरह सार्वजनिक मंच पर सवाल किया।
✅ 2. NJAC पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल
उन्होंने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने पर सख्त सवाल उठाए:
“जब संसद के दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से कानून पारित किया, तो सुप्रीम कोर्ट उसे कैसे रद्द कर सकता है?”
इस बयान को न्यायपालिका की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप माना गया और कानूनविदों के बीच इस पर व्यापक बहस छिड़ गई।
✅ 3. राघव चड्ढा का निलंबन रद्द किया, सरकार नाराज
आप सांसद राघव चड्ढा को 11 अगस्त 2023 को राज्यसभा से निलंबित किया गया था। लेकिन धनखड़ ने उनका निलंबन समाप्त कर दिया, जिससे सरकार नाराज हो गई। यह निर्णय विपक्ष के पक्ष में गया, जबकि सरकार चाहती थी कि वह निर्णय बरकरार रखा जाए।
✅ 4. जस्टिस वर्मा विवाद में सरकार से पहले विपक्ष को दी मंजूरी
जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ विपक्षी प्रस्ताव को धनखड़ ने बिना सरकार को सूचित किए मंजूरी दे दी, जिससे सरकार चौंक गई और सियासी असहमति खुलकर सामने आ गई।
🔍 क्या कहते हैं जानकार?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि धनखड़ के कार्यकाल में वह एक स्वतंत्र सोच वाले उपराष्ट्रपति के रूप में उभरे, लेकिन उनकी बोलने की स्वतंत्रता को कई बार संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन माना गया। उन्होंने सत्ता पक्ष और न्यायपालिका दोनों से टकराने में संकोच नहीं किया।
📌 निष्कर्ष
जगदीप धनखड़ का कार्यकाल विवादों से भरा रहा — चाहे वो किसान आंदोलन पर सरकार से जवाब मांगना हो या फिर न्यायपालिका के फैसलों पर सवाल उठाना। उनकी निष्पक्षता पर कई बार प्रश्नचिह्न लगाए गए, लेकिन कुछ लोग उन्हें संवैधानिक मर्यादा की रक्षा करने वाला निर्भीक नेता भी मानते हैं।
अब सवाल यह है कि क्या भारत की राजनीति में यह एक नया ट्रेंड है, जहां उच्च संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति न सिर्फ सरकार बल्कि न्यायपालिका को भी खुलकर चुनौती देता है?
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इस लेख को विभिन्न समाचार स्रोतों और विश्वसनीय मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें प्रस्तुत सभी जानकारियां सूचना के उद्देश्य से दी गई हैं। tvtennetwork किसी भी दावे की पुष्टि नहीं करता है।