🔹 11वीं – 17वीं शताब्दी | चंदेल वंश का प्रभुत्व
- झांसी का क्षेत्र उस समय बलवंत नगर के नाम से जाना जाता था।
- इस दौरान चंदेल वंश का शासन रहा, जिन्होंने बुंदेलखंड क्षेत्र में कई किले और मंदिर बनवाए।
- यह किला एक प्राचीन गढ़ी या चौकी के रूप में कार्य करता था, जिसका उद्देश्य सुरक्षा और प्रशासनिक नियंत्रण था।
🔹 1613 – 1627 | ओरछा के राजा वीर सिंह जूदेव का शासन
- राजा वीर सिंह देव बुंदेला, जो ओरछा रियासत के शासक थे, ने 1613 ई. में झांसी किले का निर्माण प्रारंभ किया।
- उन्होंने इस पहाड़ी पर एक विशाल पत्थर के किले की नींव रखी, जो तत्कालीन राजनैतिक अस्थिरता के समय रक्षात्मक उद्देश्यों से बनाया गया था।
🔹 1729 – 1730 | छत्रसाल – बंगश संघर्ष और मराठों का आगमन
- मोहम्मद खान बंगश, एक अफ़ग़ानी सेनापति और मुगल सरदार, ने बुंदेलखंड पर चढ़ाई की और महाराजा छत्रसाल पर हमला किया।
- बुज़ुर्ग छत्रसाल ने पेशवा बाजीराव प्रथम से सहायता माँगी।
- पेशवा बाजीराव ने बंगश को हराया और छत्रसाल को बचाया।
- कृतज्ञता स्वरूप छत्रसाल ने बुंदेलखंड का एक बड़ा हिस्सा, जिसमें झांसी भी शामिल थी, मराठों को सौंप दिया।
🔹 1742 – 1757 | नारोशंकर का शासन (मराठा काल की शुरुआत)
- नारोशंकर को झांसी का पहला मराठा सुबेदार (गवर्नर) नियुक्त किया गया।
- उन्होंने किले का प्रसार “शंकरगढ़” नामक भाग में करवाया और कई भवनों और जलस्रोतों का निर्माण किया।
- उनका कार्यकाल 15 वर्षों तक चला और उन्होंने किले को रणनीतिक रूप से मज़बूत किया।
🔹 1757 – 1766 | मध्यवर्ती सुबेदार
- नारोशंकर के बाद कई अल्पकालिक सुबेदार नियुक्त हुए:
- माधव गोविंद काकिर्डे
- बाबूलाल कान्हाई
- दोनों का शासनकाल अधिक प्रभावशाली नहीं माना जाता।
🔹 1766 – 1769 | विश्वासराव लक्ष्मण
- उन्होंने 3 वर्षों तक झांसी का प्रशासन संभाला।
- यह काल अपेक्षाकृत स्थिर था, लेकिन कोई बड़ा निर्माण कार्य दर्ज नहीं है।
🔹 1769 – 1796 | रघुनाथ राव (II) नयवलकर
- उन्होंने झांसी का प्रशासन और अर्थव्यवस्था मजबूत की।
- महालक्ष्मी मंदिर और रघुनाथ मंदिर जैसे प्रमुख धार्मिक स्थलों का निर्माण करवाया।
- यह काल झांसी में मराठा शासन की एक सुनियोजित और विकसित अवस्था मानी जाती है।
🔹 1796 – 1835 | रामचंद्र राव और उनके उत्तराधिकारी
- रघुनाथ राव (II) के बाद उनके पोते रामचंद्र राव को गद्दी मिली।
- उनका शासनकाल प्रशासनिक दृष्टि से कमजोर रहा, जिससे झांसी की अर्थव्यवस्था डगमगा गई।
- उनकी मृत्यु 1835 में हुई।
🔹 1835 – 1838 | रघुनाथ राव (III)
- रामचंद्र राव के बाद रघुनाथ राव (III) को गद्दी मिली, लेकिन वे भी एक असफल शासक साबित हुए।
- उनके कार्यकाल में झांसी पूरी तरह आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ गई।
- उनकी मृत्यु के बाद झांसी पर ब्रिटिश निगाहें टिकीं।
🔹 1838 – 1853 | राजा गंगाधर राव नयवलकर
- अंग्रेजों ने गंगाधर राव को झांसी का राजा स्वीकार किया।
- वे एक कुशल प्रशासक, प्रजाहितैषी और विद्वान थे।
- उन्होंने झांसी को फिर से व्यवस्थित करने का कार्य शुरू किया।
- 1842 में उन्होंने मणिकर्णिका (मनु बाई) से विवाह किया, जो विवाह के बाद रानी लक्ष्मीबाई बनीं।
🔹 1853 – 1858 | रानी लक्ष्मीबाई और स्वतंत्रता संग्राम
- गंगाधर राव की मृत्यु के बाद, रानी ने दामोदर राव को गोद लिया, लेकिन अंग्रेजों ने “Doctrine of Lapse” लागू कर झांसी को हड़पने की कोशिश की।
- रानी लक्ष्मीबाई ने इसका कड़ा विरोध किया और किले को आज़ादी की ज्वाला का केन्द्र बना दिया।
- 1857 की क्रांति में रानी ने झांसी से मोर्चा लिया और 1858 में जनरल ह्यूग रोज से वीरतापूर्वक युद्ध किया।
- रानी ने घोड़े पर चढ़कर किले से छलांग लगाई और कालपी, फिर ग्वालियर पहुँचीं, जहाँ 18 जून 1858 को वीरगति को प्राप्त हुईं।
🧱 वास्तुकला और किले की संरचना
- आयाम व सामग्री: 15 एकड़ क्षेत्र में फैला, लंबाई लगभग 312 मीटर, चौड़ाई लगभग 225 मीटर। पत्थर, चूना और सीसा मिलाकर निर्मित
- दीवारें: ग्रेनाइट की बड़ी दीवारें, 16–20 फीट मोटी, दक्षिणी दीवार लगभग लम्बवत बनी हुई ।
- सुरक्षा संरचना: दोनों ओर खाई, 22 मजबूत स्तम्भों द्वारा दीवारों को सहारा दिया गया ।
🚪 प्रवेश द्वार और भीतर की दर्शनीयताएं
- किले में कुल 10 दरवाजे हैं – खंडेराव गेट , दतिया गेट , भांडेरी गेट (जहाँ से रानी ने भागकर अंग्रेजों को चकमा दिया), उन्नाव गेट , बड़ा गाँव गेट , लक्ष्मी गेट , सागर गेट , ओरछा गेट , सैयर गेट और चांद (दरवाजा) गेट ।
- चार खिड़कियाँ (खिरकियाँ) – गनपतगिर खिड़की , अलिगोल खिड़की , सूजे खान खिड़की , सागर खिड़की
- कड़क बिजली तोप (शेर सर) और भवानी शंकर तोप
- गुलाम गौस खान, मोती बाई और खुदा बख्श की मजार
- अन्य विशेष स्थल: पंच महल (ब्रिटिशों ने ऊपरी मंज़िल जोड़ी), “जंपिंग पॉइंट” – रानी का प्रसिद्ध अद्भुत छलाँग स्थल यादगार है ।
🏛️ रानी महल और संग्रहालय
- किले के पास बना रानी महल (19वीं सदी में निर्मित), जो अब पुरातात्त्विक संग्रहालय के रूप में संचालित है ।
- संग्रहालय में 9वीं शताब्दी की मूर्तियां, हथियार, और 1857-58 के युद्ध की दीओरामा प्रदर्शित हैं ।
🎭 सांस्कृतिक आयोजन
- हर वर्ष जनवरी–फ़रवरी में झांसी महोत्सव का आयोजन होता है जहाँ संगीत, नाटक और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ होती हैं ।
- किले की शाम में साउंड और लाइट शो का आकर्षक कार्यक्रम होता है, जिसमें रानी का वीरगाथा चित्रित किया जाता है ।
👉 यात्रा योजना:
- खोलने का समय: सुबह 7 बजे – शाम 6 बजे
- यात्रा सलाह: किले की ऊँचाई पर स्थित होने के कारण सीढ़ियों से चढ़ाई होगी; गर्मी भरे महीनों में सुबह जल्दी जाएँ।
- निकटतम परिवहन: झांसी रेलवे स्टेशन (3 किमी), ग्वालियर हवाई अड्डा (103 किमी) ।
(हमने पूरी सावधानी से इस लेख को लिखा है यदि फिर भी कोई चूक या भूल दिखाई देती है तो कृपया हमे info@tvtennetwork पर मेल के माध्यम से अथवा 7068666140 पर व्हट्स अप के माध्यम से अवगत कराएं हम तत्काल उसे सही करेंगे आपका सहयोग हमे प्रेरणा देता है )