History of Jhansi : Jhansi का पुराना नाम
चलिए आज झांसी के किस्से को शुरू से शुरू करें ।
🌄 बंगरा की पहाड़ी, झाँसी का आरंभिक इतिहास
स्थानीय गणनाओं के अनुसार, सन् 1553 ई. में कुछ अहीर ग्वाले पश्चिम से पहाड़ी की तलहटी में आए और अपने पशुओं को चराने के लिए यहाँ रुक गए। इस क्षेत्र की मिट्टी पर उन्होंने झोपडियाँ बनाकर केवल एक ढांचा ही नहीं, बल्कि एक नए सभ्य जीवन का बीज बोया। उस समय यह लहरगिर्द गाँव का हिस्सा था, जो तब ओरछा के महाराजा वीर सिंह देव के अधीन था ।

🏗️ किले की नींव: वीर सिंह देव और मंज महल
कुछ वर्षों बाद — 1613 ई. में — महाराजा वीर सिंह देव ने उसी पहाड़ी पर एक छोटी गढ़ी — जिसे बाद में ‘मंज महल’ कहा गया — का निर्माण करवाया । उन्होंने इस पर गढ़ी का रूप दिया ताकि आसपास का क्षेत्र संरक्षित और नियंत्रित हो सके, न कि एक बड़े किले के रूप में विकसित हो।
इस छोटे गढ़ी के पास छोटा-सा गांव बस गया था, जिसे बाद में बलवन्त नगर कहा गया — वर्तमान झाँसी का प्रारंभिक केन्द्र ।
🔄 मुग़लों के हाथ में आश्रय
वीर सिंह देव के उत्तराधिकारी की हत्या के बाद— यह बता पाना कठिन है कि किसकी मृत्यु के बाद — मंज महल मुग़लों के आधीन आ गया। यह व्यवस्था लगभग 1729–1742 ई. तक बनी रही, उस समय अंतिम मुगल गवर्नर मुकीम खान थे
🕵️♂️ गद्दारी और मराठाओं का प्रवेश
एक दिलचस्प राजनीतिक मोड़ तब आया, जब मुकीम खान के मुलाजिम शेख बुलाकी को पद से हटाया गया। नाराज़ बुलाकी मल्हार कृष्णा राव के संरक्षण में चला गया — जिनका संबंध मराठा सरदार नारू शंकर से था ।
कुछ समय बाद बुलाकी वफादारी का नाटक करके लौट आया और मुकीम खान को मित्र बताकर गढ़ के द्वार खोल दिए। इसी रात नरू शंकर के सिपाही बिना किसी संघर्ष के अंदर पहुँच गए, मुकीम खान को बंदी बनाया, और किले पर कब्जा कर लिया। बुलाकी को भी इस रणनीति में शामिल किया गया। इसके बाद मुकीम खान को दस्तख़त करने के लिए मजबूर किया गया कि वह मंज महल क़िले को नारू शंकर को बेच रहा है ।
🏰 शंकरगढ़ का उदय
नारू शंकर ने इस गढ़ी को न केवल शक्तिशाली बनाया बल्कि इसे विशाल क़िले — शंकरगढ़ — का रूप दिया। ओरछा से लोगों को बसाकर और किले के चारों ओर दीवारों और संरचनाओं का विस्तार किया ।
⚖️ मराठा शासन और राजनैतिक बदलाव
1742 ई. में नारू शंकर को मराठा पेशवा बुला ले गए। इसके बाद किले की गद्दी मधाजी गोबिंद आंतीया को मिली, जिनके नाम पर आज आंतीया ताल मंत्रमुग्ध करता है ।
विषय 1761–1765 ई. के बारे में अस्पष्ट लेकिन उल्लेखनीय है कि सुझाद्दुल्ला ने कुछ समय के लिए किले पर कब्ज़ा कर लिया था। फिर हुआ ऐसा कि अनूपगिरी महाराज ने उसे समर्थन छोड़ मदद से किले पर कब्ज़ा किया, जिसके बाद किले का नाम बलवन्तगढ़ रखा गया — संभवतः बलवंत गिरी महाराज के सम्मान में, हालांकि इसकी पुष्टि अभी तक विदित नहीं हुई ।
🧭 संरचनात्मक और रणनीतिक सफ़ाई
आप सोच सकते हैं: बीर सिंह देव के पास ओरछा का किला था, तो झाँसी क्यों बनाया? सत्य यहीं है कि मंज महल केला नहीं, एक सुरक्षित गढ़ी थी, जो त्रैतीय सुरक्षा व्यवस्था में मदद करती थी। इन्होंने कथित तौर पर 52 ऐसी गढ़ियाँ बनवाई थीं—मंज महल उनमें से सिर्फ एक था ।
📚 इतिहास की जटिल परतें
ऐतिहासिक पदानुक्रम में:
- 1613: वीर सिंह देव द्वारा निर्माण
- 1729–1742: मुग़ल शासन व मुकीम खान की पहरेदारी
- 1742: गद्दारी से मराठाओं को कब्जा
- 1742–1757: नारू शंकर की शंकारगढ़ अवधि
- 1757–1761: मधाजी आंतीया की गद्दी
- 1761–1765: सुझाद्दुल्ला और अनूपगिरी/बलवन्तगिरी की अवधियाँ
इन संवैधानिक उतार-चढ़ावों ने इस शिला-गढ़ को राजनैतिक इतिहास का निर्णायक बिंदु बना दिया
🏛️ विरासत का अवशेष
आज यह स्थान झाँसी किला (Jhansi Fort) के नाम से सार्वजनिक स्थल है। पहाड़ी पर इसका किलेबंदी और आसपास की दीवारें इतिहास की गवाह हैं — सदियों पुरानी नीतियाँ, युद्ध, राजनीतिक गठजोड़ और वीरता .
🔍 निष्कर्ष
बंगरा की पहाड़ी से शंकरगढ़ तक की कहानी सिर्फ भूगोल न होकर राजनीति, सामरिक महत्व, लोकगाथाओं और राजाओं की हस्तलिपियों का इतिहास है। आज यह स्थल लोगों को रानी लक्ष्मीबाई की मिट्टी से जोड़ता है, उस मिट्टी से जो कभी वीर सिंह देव, मुकीम खान, नारू शंकर, मधाजी आंतीया, सुझाद्दुल्ला और अनूपगिरी के कदमों की धूप छाँव देख चुकी है।
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