Jhansi Cantonment Cemetery : इतिहास के अनछुए पन्नों से एक दुर्लभ दस्तावेज़
(Jhansi Cantonment Cemetery – A Forgotten Chronicle)
झांसी – एक छोटा शहर, लेकिन ऐतिहासिक विरासत से समृद्ध
भारत में ब्रिटिश राज के समय असंख्य कब्रिस्तान (cemeteries) हैं, जो उनके अस्थायी या स्थायी सैन्य और नागरिक बसावटों के साक्षी हैं। ऐसे ही एक महत्वपूर्ण लेकिन अपेक्षाकृत कम चर्चित स्थल का नाम है – झांसी कैंटोनमेंट सेमेट्री, जो मध्य भारत के ऐतिहासिक नगर झांसी के बाहरी इलाके में स्थित है।
झांसी, हालांकि आकार में बड़ा नहीं, परंतु अपने ऐतिहासिक और सामरिक महत्व के कारण हमेशा विशेष रहा है। यह न केवल ब्रिटिश सेना का एक प्रमुख अड्डा था, बल्कि रेलवे का एक महत्वपूर्ण जंक्शन भी, जहां एक समय में विश्व का सबसे लंबा रेलवे प्लेटफॉर्म हुआ करता था।
झांसी: साहित्य, युद्ध और बलिदान की भूमि
यह माना जाता है कि झांसी ही लेखक जॉन मास्टर्स के 1954 के उपन्यास ‘Bhowani Junction’ की प्रेरणा थी, जिस पर 1956 में एक फिल्म भी बनी।
झांसी का नाम 1857 की क्रांति और ‘रानी लक्ष्मीबाई’ की वीरगाथा के साथ जुड़ा हुआ है। उस दौर के बाद से ब्रिटिश और भारतीय रेजीमेंट्स की यहां उपस्थिति बढ़ गई थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान झांसी, ‘चिन्डिट्स’ (The Chindits) नामक विशेष बलों की ट्रेनिंग और संचालन का मुख्यालय बना, जो बर्मा में शत्रु के पीछे जाकर युद्ध करते थे।
रानी लक्ष्मीबाई की क्रांति के बाद की सैनिक गतिविधियाँ:
-
रानी झांसी की शहादत के बाद ब्रिटिश सरकार ने झांसी में सख्त सैन्य निगरानी और संरचनाएं स्थापित कीं।
-
ब्रिटिश फौज की कई यूनिट्स — जैसे कि Royal Scots, Welch Regiment, Bengal Lancers आदि — झांसी में तैनात रहीं।
-
कब्रिस्तान में कई कब्रें ऐसे ब्रिटिश सैनिकों की हैं जिन्होंने 1857 के विद्रोह के दौरान या बाद में सेवा दी।
-
चिन्डिट्स और WWII का संदर्भ:
-
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान (1942-45) झांसी में The Chindits का मुख्यालय बना। यह विशेष फोर्स ब्रिटिश-भारतीय सेना की कमांडो यूनिट थी, जिसका नेतृत्व ब्रिगेडियर ऑरडे विंगेट कर रहे थे।
-
इनकी ट्रेनिंग झांसी और उसके आसपास के जंगलों में होती थी। कुछ चिन्डिट सैनिक जो युद्ध से लौट नहीं सके, उनकी कब्रें भी इसी कब्रिस्तान में हैं।
-
1947 से पहले झांसी कैंटोनमेंट सेमेट्री में 2900 से अधिक व्यक्ति दफनाए गए है।
-
इन कब्रों में Railway Engineers, Telegraph Officers, Missionaries, और Colonial Administrators भी शामिल हैं।
-
एक विशेष कड़ी यह भी है कि 1938 की एयर फ्रांस क्रैश, जो झांसी के पास हुई थी, उसके पीड़ितों की कब्रें भी यहीं स्थित हैं।
-
बोअर युद्ध (Boer War, 1899-1902) के दौरान जो बंदी भारत लाए गए थे, उनमें कुछ की मृत्यु झांसी में हुई थी। उनकी कब्रें भी इसी सेमेट्री में दर्ज हैं।
-
ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों के अलावा,
-
सेना के परिवारों के सदस्य – पत्नी, बच्चे, शिशु,
-
ब्रिटिश सैनिकों के साथ उनकी पत्नियाँ और बच्चे, जो भारत की जलवायु, बीमारी (जैसे कि मलेरिया, हैजा) और युद्ध के कारण काल कवलित हुए — उनकी कब्रें यहाँ हृदयविदारक कहानियों को सहेजती हैं।
-
Epidemiological History – 19वीं सदी में झांसी में हुई महामारी (cholera, typhoid, plague) के शिकार लोगों की भी जानकारी इसमें मिलती है। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य इतिहास शोधकर्ताओं के लिए भी महत्वपूर्ण है।
1857 के झांसी विद्रोह के दौरान हुए नरसंहार में मारे गए कई ब्रिटिश नागरिकों और सैन्यकर्मियों को भी झांसी कैंटोनमेंट सेमेट्री में ही दफनाया गया था। जब भारतीय सिपाहियों ने झांसी के किले और छावनी पर विद्रोह किया, तब सैकड़ों ब्रिटिश पुरुष, महिलाएँ और बच्चे मारे गए। इस हृदयविदारक घटना के बाद, उन मृतकों की कब्रें उसी कब्रिस्तान में बनीं, जो आज भी 1857 की क्रांति की गूंगी गवाह बनी खड़ी हैं।
इन कब्रों पर उकेरे गए शिलालेख आज भी बताते हैं कि कैसे उस विद्रोह ने भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश सत्ता की नींव हिला दी थी। कुछ शिलालेखों में बच्चों और गर्भवती महिलाओं के नाम भी दर्ज हैं, जिनका कोई सैन्य संबंध नहीं था, लेकिन वे उस समय की उथल-पुथल में मारे गए।
यह भाग सेमेट्री को केवल एक सैनिक विश्राम स्थल नहीं, बल्कि 1857 के जनविरोध और औपनिवेशिक सत्ता के टकराव का प्रतीक स्थल भी बनाता है। यही वो स्थान है जहाँ एक ओर रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का इतिहास लिखा गया, तो दूसरी ओर ब्रिटिश उपनिवेशवाद की त्रासदियाँ भी दफन हैं।
संरक्षण और चुनौतीपूर्ण पुनर्निर्माण कार्य: CWGC द्वारा कब्रों का नवीनीकरण
-
कब्रिस्तान दशकों तक उपेक्षित और झाड़ियों से घिरा रहा। 2005 के आसपास, पेगी कैंटेम (Peggy Cantem) नाम की एक स्थानीय बुज़ुर्ग महिला ने इस कब्रिस्तान की उपेक्षा को देख कर इसका संरक्षण कार्य शुरू करवाया। उनके इस प्रयास को ब्रिटेन के एक इंजीनियर क्रिस डेवी ने सहयोग दिया,2016 में CWGC ने कई जीर्ण कब्रों का नवीनीकरण किया
-
BACSA (British Association for Cemeteries in South Asia) की पहल और Peggy Cantem के संकल्प से इसमें फिर से रुचि जगी।
-
2005-2010 के बीच प्रारंभिक मरम्मत कार्य हुए — जिनमें दीवारों की मरम्मत, घास व पेड़ों की सफाई, रास्तों की बहाली और रजिस्टरों का डिजिटलीकरण शामिल था।
-
CWGC (Commonwealth War Graves Commission) ने कुछ कब्रों को अपने “स्टैंडर्ड हेडस्टोन” में बदला, जिससे पुरानी भावनात्मक शिलालेख हट गए — लेकिन BACSA के डेटा संग्रह में वे सुरक्षित हैं।
झांसी कैंटोनमेंट सेमेट्री सिर्फ एक कब्रिस्तान नहीं, बल्कि भारत और ब्रिटिश इतिहास के उस अध्याय का दस्तावेज़ है जिसे अक्सर भुला दिया जाता है। यह दस्तावेज़ उन अनाम और विस्मृत चेहरों को नाम और स्थान देता है जिन्होंने भारत में अपने जीवन का एक हिस्सा बिताया और यहीं विश्राम पाए।
📲 हमारा साथ जुड़िए – हर खबर कुछ अलग है!
अगर आप भी ऐसी ही सटीक, निष्पक्ष और भीड़ से हटकर ख़बरों की तलाश में हैं, तो TV10 Network से अभी जुड़िए।
हम लाते हैं वो खबरें जो अक्सर छूट जाती हैं – ज़मीनी सच्चाई, आपकी ज़ुबानी।
🔹 👍 Facebook पर Like करें
🔹 🐦 Twitter (X) पर Follow करें
🔹 📸 Instagram पर जुड़ें
🔹 ▶️ YouTube पर Subscribe करें
👉 आपका एक Like, Follow या Subscribe हमारे लिए नई ऊर्जा है – धन्यवाद!
(डिसक्लेमर / अस्वीकरण)
यह लेख ऐतिहासिक दस्तावेजों, अभिलेखों, शोध-पत्रों, पुस्तक स्रोतों और संबंधित संस्थानों द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारियों पर आधारित है। इसमें उल्लिखित व्यक्तियों, घटनाओं या स्थानों से संबंधित विवरण पूर्ण शोध और सावधानी के साथ प्रस्तुत किए गए हैं, परंतु इनकी पूर्ण सटीकता या अद्यतनता की गारंटी नहीं दी जाती। लेख का उद्देश्य केवल जानकारी देना है और इसका उपयोग पाठक अपने विवेक अनुसार करें।
यह लेख किसी भी समुदाय, राष्ट्र या व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के उद्देश्य से नहीं लिखा गया है। यदि किसी तथ्य, संदर्भ या प्रस्तुति में सुधार या सुझाव हो, तो कृपया हमें info@tvtennetwork.com पर ईमेल करें अथवा 7068666140 पर व्हाट्सएप करें। आपके योगदान और सुझावों का हम स्वागत करते हैं।