🛕 झांसी की छाया—सुंदर, मुंदर और जूही: अनसुनी लेकिन अमर गाथा
“इतिहास सिर्फ तख्तों की कहानी नहीं है… यह उन परछाइयों की भी दास्तान है, जिन्होंने अपनों को ढाल बनकर बचाया…”
🌸 1. साधारण सी तीन लड़कियां, जो बन गईं इतिहास की अमर दीपशिखाएं
1850 के दशक की झांसी — एक सुंदर, शांत, और विद्या-संस्कृति से समृद्ध रियासत।
कई लड़कियां राजा-रानी के दरबार में नृत्य-गायन या सेवा के लिए आती थीं।
इन्हीं में थीं तीन बालिकाएं — सुंदर, मुंदर और जूही।
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जूही सबसे पहले आईं।
गणेश मंदिर में विवाह के समय जब रानी मणिकर्णिका का रथ निकला,
तो जूही रथ पर चढ़ गईं और बोलीं — “मैं आपकी दासी हूं।”रानी ने तपाक से कहा —
“अगर दासी बनकर रहोगी तो अभी उतर जाओ। अगर सहेली बनना चाहो, तो स्वागत है।” -
पीछे-पीछे सुंदर और मुंदर भी आईं।
वह भी बोलीं कि वे सेवा करना चाहती हैं, और रानी ने उन्हें भी स्नेह से अपनाया।
रानी लक्ष्मीबाई इन तीनों को केवल दासी नहीं, अपना साया मानने लगीं।
वे अब रानी के साथ रहतीं, हँसतीं, बातें करतीं — और वहीँ से शुरू हुआ एक ऐसा रिश्ता, जो आगे जाकर रानी की सुरक्षा का सबसे मजबूत कवच बन गया।
🏇 2. प्रशिक्षण — जब रानी ने बनाई दासियों को युद्धनायिकाएं
एक दिन रानी ने पूछा —
“क्या तुम्हें तलवार चलाना, घुड़सवारी, या युद्ध की कोई विधा आती है?”
तीनों ने जवाब दिया —
“नहीं महारानी, हम तो सिर्फ गीत गाना और नृत्य जानते हैं।”
इस पर रानी ने गंभीर होकर कहा —
“जो स्त्री सिर्फ सजना जानती है, वह कभी अपने गौरव की रक्षा नहीं कर सकती।”
और यहीं से शुरू हुआ तीनों का परिवर्तन।
🛡️ रण कौशल का प्रशिक्षण
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सुंदर घोड़े की सवारी में दक्ष बन गईं
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मुंदर तलवारबाज़ी में माहिर हो गईं
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जूही युद्ध रणनीति और निशानेबाजी सीख गईं
रानी ने उन्हें केवल हथियार चलाना नहीं सिखाया, बल्कि धैर्य, नैतिकता, और रणचातुर्य का भी पाठ पढ़ाया।
उनकी शिक्षा बालिकाओं को सैनिकों में बदल रही थी — और रानी लक्ष्मीबाई जानती थीं कि आने वाला समय बहुत कठिन होगा।
🔥 3. बलिदान — झांसी की दीवार पर लिखा गया तीन वीरांगनाओं का आखिरी अध्याय
7 जून 1857 की रात —
झांसी अंग्रेजों से चारों ओर से घिर चुकी थी।
रानी के पास सिर्फ एक विकल्प था — किले से बाहर निकलकर ग्वालियर की ओर कूच करना।
रानी ने अपनी पीठ पर दामोदर राव (पुत्र) को बांधा,
घोड़े पर सवार हुईं, और अपने सबसे भरोसेमंद योद्धाओं को साथ लिया।
उन तीनों में थीं — सुंदर, मुंदर और जूही।
उनका एक ही उद्देश्य था — रानी को हर हाल में सुरक्षित बाहर निकालना।
🌹 सुंदर — पहली शहादत
रानी जैसे ही किले की ऊँची दीवार के समीप पहुंचीं,
अंग्रेज सिपाहियों ने गोलियां चलानी शुरू कर दीं।
सुंदर सबसे आगे थीं —
उन्होंने ढाल बनकर रानी की रक्षा की,
लेकिन एक गोली उनके सीने में आ लगी।
वह घोड़े से गिरीं, लेकिन उनके चेहरे पर दर्द नहीं,
बल्कि एक मुस्कान थी —
“रानी बची… यही मेरी जीत है।”
🌷 मुंदर — बीच रास्ते में वीरगति
रानी की घुड़सवारी तेज थी, लेकिन पीछा करने वाले सिपाही और ज्यादा तेज थे।
मुंदर ने मुड़कर उन्हें रोका —
धड़ाधड़ तलवारें चलीं, कई अंग्रेज मारे गए।
पर तभी एक गोली उनकी जांघ को चीरते हुए आर-पार हो गई।
खून बहा… वे नीचे गिरीं…
लेकिन उन्होंने अंतिम क्षणों तक रानी की दिशा में प्रहर बना रखा।
🌼 जूही — अंतिम ढाल
अब सिर्फ जूही और रानी थीं।
रानी ने कहा —
“तू लौट जा, मैं निकल जाऊंगी।”
पर जूही बोली —
“जब सहेली कहा था, तब कोई शर्त नहीं थी रानी। मैं आपके साथ मरूंगी।”
कुदान स्थल पहुंचते ही जूही को भी एक गोली लगी।
उसने रानी की रास थामी और छलांग लगाने में मदद की।
रानी निकल गईं —
जूही वहीं गिर पड़ी —
तीनों छायाएं अब मिट चुकी थीं, लेकिन रानी अमर हो चुकी थीं।
🕯️ क्या हमने उनके बलिदान को याद रखा?
रानी यदि उस रात सकुशल निकल पाईं,
तो उसमें सुंदर, मुंदर और जूही का पूर्ण योगदान था।
हर झांसीवासी की आत्मा में ये तीन नाम आज भी जीवित हैं।
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डिसक्लेमर / अस्वीकरण)
यह लेख ऐतिहासिक तथ्यों, प्रचलित लोककथाओं और उपलब्ध साहित्यिक स्रोतों के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें उल्लिखित घटनाएं, पात्र और विवरण विभिन्न ऐतिहासिक पुस्तकों, लेखक वृंदावनलाल वर्मा के साहित्य एवं स्थानीय मान्यताओं से लिए गए हैं। इसका उद्देश्य केवल जनजागरूकता और ऐतिहासिक जानकारी प्रदान करना है। हम इसकी पूर्ण सत्यता या किसी विशेष दृष्टिकोण की पुष्टि नहीं करते। इस लेख में प्रयुक्त चित्र AI जनरेटेड है और इसका उपयोग केवल प्रतिनिधित्व हेतु किया गया है। पाठकों से निवेदन है कि वे इस जानकारी को संदर्भ रूप में लें, न कि अंतिम ऐतिहासिक प्रमाण के रूप में।