radha mohan das
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संत हृदय नवनीत समाना : महंत राधामोहन दास

झाँसी। सिविल लाइन ग्वालियर रोड स्थित कुंज बिहारी मंदिर में गद्दी पर आसीन रहे सभी गुरु आचार्यो की पुण्य स्मृति में आयोजित एक वर्षीय भक्तमाल कथा में कथा व्यास बुंदेलखण्ड धर्माचार्य महंत राधामोहन दास महाराज ने रविवार को महर्षि दधीचि की कथा का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने कहा कि संत का स्वभाव होता है कि जो उनका(संतका) बुरा चाहते हैं फिर भी संत उनका भी भला करता है, क्योंकि संत का स्वभाव तो मानव कल्याण के लिए है। मानस में गोस्वामी तुससीदास जी लिखते हैं ‘संत हृदय नवनीत समाना”।भक्तमाल कथा में महर्षि दधीचि का प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कहा कि ब्रह्म विद्या का ज्ञान केवल महर्षि दधीचि को था जिसे प्राप्त करने स्वर्ग के राजा इंद्र दधीचि के पास पहुंच कर ब्रह्म विद्या का ज्ञान देने की जिद करते हैं तथा सिर काटने की बात कहते हुए क्रोधित हो जाते हैं। अंततः महर्षि दधीचि इंद्र को ब्रह्म विद्या का उपदेश देते हुए सांसारिक उपभोगों की निंदा करते हुए इंद्र को कुत्ता की उपमा दे देते हैं। इससे नाराज इंद्र उनसे किसी ओर को यह उपदेश न देने पर गला काटने की कहकर चले जाते हैं कुछ दिन बाद अश्वनी कुमार के बार बार अनुरोध करने पर महर्षि अश्वनी कुमार को ब्रह्म विद्या का उपदेश देते हैं जिससे क्रोधित होकर इंद्र महर्षि दधीचि का गला काटकर उनकी हत्या कर दी लेकिन अश्वनी कुमार ने महर्षि दधीचि को पुनः जीवित कर दिया। कथा व्यास ने कहा कि बाद में महर्षि दधीचि ने इंद्र के मांगने पर लोक कल्याण की खातिर अपनी अस्थियां दान करदी जिनसे वज्र का निर्माण हुआ और राक्षस वृत्तासुर का वध संभव हुआ। इस मौके पर उन्होंने “बंदनीय मां भक्ति प्यारी, हरि हरिजन को प्यारी””सुंदर भजन सुनाया। जिसे श्रोता झूम उठे। हारमोनिया पर श्रीराम साहू, तबला पर कृष्णा अग्रवाल ने संगत की।

विमल "हिंदुस्तानी"
"लेखक ने दिल्ली एनसीआर के प्रमुख संस्थान से Mass Communication & Journalisam with Advertisment मे दो वर्ष अध्ययन किया है एवं पिछले दस वर्षों से मीडिया जगत से जुड़े हैं। उन्होंने विभिन्न न्यूज़ चैनलों में संवाददाता के रूप में कार्य किया है और एक समाचार पत्र का संपादन, प्रकाशन तथा प्रबंधन भी स्वयं किया है। लेखक की विशेषता यह है कि वे भीड़ के साथ चलने के बजाय ऐसे विषयों को उठाते हैं जो अक्सर अनछुए रह जाते हैं। उनका उद्देश्य लेखनी के माध्यम से भ्रम नहीं, बल्कि ‘ब्रह्म’ – यानि सत्य, सार और सच्चाई – को प्रस्तुत करना है।"